“गौशाला नहीं, श्मशान है कुटरा की गौशाला! भूख से तड़पती गायें, खेतों में बिखरी हड्डियों की फसल – कब जागेगा प्रशासन?” कालपी (जालौन) – “गौमाता” की जय-जयकार करने वाला तंत्र आज अपने असली चेहरे के साथ बेनकाब हो चुका है। जनपद जालौन के महेवा ब्लॉक अंतर्गत कुटरा गौशाला इस वक्त चर्चा में है, लेकिन सेवा-संरक्षण की वजह से नहीं – बल्कि दरिंदगी, लापरवाही और अमानवीयता की वजह से!*
*कुटरा गौशाला एक जीवित नरक बन चुकी है – जहाँ ताले जड़े होते हैं, गायें भूख-प्यास से दम तोड़ती हैं, और मृत गायों को सम्मान नहीं, बल्कि खेतों में फेंककर गलने-सड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है।*
*हड्डियों की फसल – खेतों में पसरी हुई लाशों की कहानी!*
*पत्रकार जब खुद मौके पर पहुँचे तो जो देखा, वो रूह कंपा देने वाला था – गौशाला के पीछे एक खेत ऐसा लगा मानो वहाँ अनाज नहीं, हड्डियों की फसल उगी हो। 40 से 50 मृत गायों के कंकाल जगह-जगह बिखरे थे। कोई व्यवस्था नहीं, कोई संवेदना नहीं।*
*स्थानीय लोगों ने नाम न बताने की शर्त पर जो कहा, वो और भी शर्मनाक है – “यहाँ जीवित गायों से लेकर मरे हुए जानवरों तक, किसी की भी इज्जत नहीं है। सिर्फ पैसा खाया जा रहा है, सेवा तो सिर्फ दिखावा है।”*
*तनख्वाह घर बैठे, प्रधान से सवाल मत पूछो!*
*गायों की देखभाल के लिए कर्मचारी नियुक्त हैं, लेकिन वे कभी गौशाला में दिखते नहीं। घर बैठे तनख्वाह उड़ाई जा रही है। और अगर कोई इस लापरवाही पर सवाल उठाए, तो ग्राम प्रधान “सम्मान” की आड़ में मुंह बन्द करा देते है*
“*गौमाता भूख से तड़प-तड़प कर मर रही है, और जिम्मेदार कुर्सियों पर आराम से बैठे हैं!”*
*अब सवाल जनता का है – क्या यही है योगी सरकार की गो-सेवा? क्या यही है ‘गौशाला’ का सच?*
ब्यूरो रिपोर्ट
*अत्रि यादव
