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Explainer : क्या होते हैं असंसदीय शब्द, जिन्हें संसद में बोलना माना जाता है बुरा, इन पर छप चुकी है किताब भी

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हाइलाइट्स

पहली बार लोकसभा ने इस बारे में शब्दों का चयन करके 1999 में निकाली थी पहली किताब
तब से हर बार अपडेट होती है ये किताब और बढ़ते जाते हैं असंसदीद शब्द

कुछ शब्द संसद की बोलचाल में इस्तेमाल नहीं होते. इन्हें असंसदीय शब्द माना जाता है. हाल ही में जिन सांसदों को लोकसभा और राज्य सभा से निलंबित किया. उन्हें असंसदीय शब्दों के इस्तेमाल का भी दोषी पाया गया. संसद में सांसदों के लिए बनी आचार संहिता कहती है कि हम ऐसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं कर सकते, जो अशोभनीय हों.

पिछले साल जब जुलाई में मानसून सत्र शुरू हो रहा था, तब लोकसभा सचिवालय द्वारा उन शब्दों की एक सूची सार्वजनिक की गई, जिन्हें लोकसभा और राज्यसभा दोनों में असंसदीय माना जाएगा. वैसे इस पर लोकसभा और राज्यसभा द्वारा एक बुकलेट भी 1999 में पहली बार जारी की गई थी.

इसमें कई तरह के शब्दों का उपयोग, जैसे “जुमलाजीवी”, “खून से खेती “, और गद्दार जैसे बहुत शब्दों को बहस के दौरान या सदन में इस्तेमाल से प्रतिबंधित कर दिया गया. अगर कोई सांसद उनका उपयोग करता है, तो उसे कार्यवाही से हटा दिया जाता है.

हालांकि जब ये नई सूची जारी हुई तो कुछ विपक्षी नेताओं ने प्रतिबंधों को अनावश्यक बताते हुए केंद्र पर हमला किया. कुछ ने निलंबन के जोखिम पर भी उनका उपयोग करने की धमकी दी.

हालांकि दुनियाभर की संसदों में बहुत से ऐसे शब्द हैं, जिन्हें सदन की बोलचाल की भाषा में इस्तेमाल नहीं किया जाता और असंसदीय माना जाता है. हर देश की संसद ने ऐसे शब्दों की एक सूची बना रखी है. उदाहरण के लिए, “डंबो” और “झूठा” जैसे शब्द ऑस्ट्रेलियाई सीनेट में असंसदीय माना जाते हैं.

कौन से शब्द और वाक्य असंसदीय की श्रेणी में
जिन शब्दों और वाक्यांशों को असंसदीय माना गया है उनमें स्कंबैग (Scumbag), शिट (Shit), बैड (Bad – जैसे संसद सदस्य बुरा आदमी है) और बैंडिकूट (Bandicoot), शब्द शामिल हैं. यदि पीठासीन अधिकारी महिला है तो कोई भी संसद सदस्य उसे “प्रिय अध्यक्ष (Beloved Chairperson)” के रूप में संबोधित नहीं कर सकता. सरकार या किसी अन्य संसद सदस्य पर “झांंसा देने (Bluffing)” का आरोप नहीं लगाया जा सकता.

रिश्वत, ब्लैकमेल, रिश्वतखोर, चोर, डाकू, लानत, धोखा, नीच, और डार्लिंग जैसे शब्द असंसदीय हैं. इनका प्रयोग संसद सदस्यों के लिए नहीं किया जा सकता. संसद सदस्य या पीठासीन अधिकारियों पर “कपटी (Double Minded)” होने का आरोप भी नहीं लगाया जा सकता.

एक संसद सदस्य को ठग, कट्टरपंथी, चरमपंथी, भगोड़ा नहीं कहा जा सकता. किसी भी सदस्य या मंत्री पर जान-बूझकर तथ्यों को छिपाने, भ्रमित करने या जानबूझकर भ्रमित होने का आरोप नहीं लगाया जा सकता.किसी भी अनपढ़ संसद सदस्य को ‘अंंगूठा छाप’ नहीं कहा जा सकता.

‘जुमलाजीवी’, बाल बुद्धि’, ‘कोविड स्प्रेडर’ और ‘स्नूपगेट’ को इसमें पिछले साल शामिल किया गया. ‘शर्मिंदा’, ‘दुर्व्यवहार’, ‘विश्वासघात’, ‘भ्रष्ट’, ‘नाटक’, पाखंड’ और ‘अक्षम’ भी लोकसभा और राज्यसभा दोनों में असंसदीय माने जा रहे हैं.

असंसदीय शब्दों से संबंधित नियम एवं प्रक्रिया
– संसद में अपेक्षा की जाती है कि जन प्रतिनिधि बेहतर आचरण करेंगे और उनकी बोलचाल और भाषा में ऐसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं हो, जो किसी को आहत करें या अपमानजनक लगें. इसे लेकर संसद में स्पीकर या सभापति द्वारा नियंत्रण बनाकर रखा जाता है.

– ये नियंत्रण सुनिश्चित करते हैं कि सदस्य सदन में अपमानजनक, अशोभनीय, अशोभनीय और असंसदीय शब्दों का प्रयोग न करें.

सदन में ये नहीं बोल सकते सांसद
जुमलाजीवी, बाल बुद्धि, बहरी सरकार,
– उल्टा चोर कोतवाल को डांटे, उचक्के, अहंकार,
– कांव-कांव करना, काला दिन, गुंडागर्दी, गुलछर्रा,
– गुल खिलाना, गुंडों की सरकार, दोहरा चरित्र,
– चोर-चोर मौसेरे भाई, चौकड़ी, तड़ीपार,
– तलवे चाटना, तानाशाह, दादागिरी
– अंट-शंट, अनपढ़, अनर्गल, अनार्किस्ट, उचक्के

– सदस्यों से अपेक्षा की जाती है कि वे संसदीय भाषा का उपयोग करके संसद की गरिमा और परंपराओं को बनाए रखें और बढ़ावा दें. संसदीय बहस के स्तर को बनाए रखने के लिए उचित भाषा का उपयोग करें. संसदीय शालीनता के कुछ मानदंडों का पालन करें.

– लोकसभा में प्रक्रिया और कार्य संचालन नियमों के नियम 380 के तहत, अध्यक्ष को उन शब्दों या वाक्यांशों को हटाने का आदेश देने का अधिकार दिया गया है, जो उनके फैसले में, “अपमानजनक या अशोभनीय या असंसदीय या अशोभनीय” हैं।

– नियम 381 में कहा गया है कि, “सदन की कार्यवाही के जिस हिस्से को इस प्रकार हटाया गया है, उसे तारांकन द्वारा चिह्नित किया जाएगा और कार्यवाही में एक व्याख्यात्मक फुटनोट इस प्रकार डाला जाएगा: ‘सभापति के आदेश के अनुसार हटाया गया’।

– आपत्तिजनक शब्दों या वाक्यों को संसद के रिकॉर्ड से बाहर रखना पीठासीन अधिकारियों, लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति की जिम्मेदारी है. लोकसभा के प्रक्रिया तथा कार्य संचालक विषयक नियम 380 के अनुसार, “यदि अध्यक्ष की राय है कि बहस में ऐसे शब्दों का प्रयोग किया गया है जो अपमानजनक या अभद्र या असंसदीय या अनिर्दिष्ट हैं, तो संभव है कि अध्यक्ष विवेकाधीन शक्ति का प्रयोग करते हुए इस तरह के शब्दों को सदन की कार्यवाही से बाहर करने का आदेश पारित करें।”

असंसदीय शब्दों पर किताब
लोकसभा सचिवालय ने इसे लेकर जो पुस्तिका प्रकाशित की, उसका नाम “असंसदीय अभिव्यक्तियाँ” यानि अनपार्लिमेंट्री एक्सप्रेशंस है. इस पुस्तक के 2004 संस्करण में लगभग 900 पृष्ठ हैं. पहली बार इस तरह एक किताब 1999 में संकलित और प्रकाशित की गई थी.

इस किताब में स्वतंत्रता-पूर्व केंद्रीय विधान सभा, भारत की संविधान सभा, लोकसभा और राज्यसभा सत्र, राज्य विधानसभाओं और सांसदों द्वारा असंसदीय घोषित की गई बहसों और वाक्यांशों से संदर्भ लिया गया था. फिर इस नियमावली रूपी किताब को कई बार प्रकाशित किया गया.

हर साल जारी होती है सूची
लोकसभा और राज्य सभा सचिवालय हर साल नए असंसदीय शब्दों को अपडेट करके उनकी सूची जारी करता है. ये सूची लोकसभा-राज्यसभा के साथ ही विधानसभा की कार्यवाहियों के दौरान अमर्यादित घोषित किए गए शब्दों को मिलाकर बनती है

सामान्य तौर पर जनवरी-फ़रवरी से इस सूची को तैयार करने की प्रक्रिया शुरू होती है. ये सूची लोकसभा के अधिकारी निकालते हैं लेकिन ये राज्यसभा के लिए भी लागू होती है. लोकसभा और राज्यसभा के अध्यक्ष जिन शब्दों को असंसदीय बता चुके होते हैं, उनकी एक सूची तैयार कर ली जाती है.
हर साल तकरीबन इस सूची में 15-20 नए शब्द जुड़े होंगे. जो शब्द वास्तव में सदन के अंदर इस्तेमाल किए गए हैं, उन्हें इस सूची में शामिल किया गया है.

Tags: Indian Parliament, Member of parliament, Unparliamentary words

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