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हाइलाइट्स

संसद के दोनों सदनों में अशोभनीय आचरण पर सदस्यों को निलंबित करने का प्रावधान है
इस निलंबन को अदालत में चुनौती नहीं जा सकती, संसद में अतीत में भी ऐसे मामले होते रहे हैं

संसद के शीतकालीन सत्र के 11वें दिन 18 दिसंबर को लोकसभा और राज्यसभा से विपक्ष के 78 सांसदों को निलंबित किया गया. इनमें 33 सांसद लोकसभा और 45 राज्यसभा से थे. इन सांसदों को 13 दिसंबर को संसद की सुरक्षा में सेंधमारी के बाद अशोभनीय आचरण को लेकर निलंबित किया गया.

इनमें 34 सांसदों को संसद के पूरे शीतकालीन सत्र के लिए सस्पेंड किया गया. वहीं 11 सांसदों को प्रिविलेज कमेटी की रिपोर्ट आने तक निलंबित किया गया. यह समिति तीन महीने के भीतर रिपोर्ट सौंपेगी.

इन्हें नियम 256 के तहत सस्पेंड किया गया है. जिन सांसदों को निलंबित किया गया है, उसमें कई विपक्षी पार्टियों के सांसद हैं. जानते हैं कि क्या है नियम 256 जो सदस्यों के आचरण और उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई को पारिभाषित करता है.

वैसे ये पहला मौका नहीं है जबकि सदन में हंगामे के कारण इस तरह की कार्रवाई की गई हो. वैसे संसद में एकसाथ 63 सदस्यों को निलंबित करने का रिकॉर्ड है.

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कब हुआ था सबसे बड़ा निलंबन
संसदीय इतिहास में लोकसभा में सबसे बड़ा निलंबन 1989 में हुआ था. सांसद पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या पर ठक्कर कमीशन की रिपोर्ट को संसद में रखे जाने पर हंगामा कर रहे थे. अध्यक्ष ने 63 सांसदों को निलंबित कर दिया था. निलंबित सदस्यों के साथ अन्य 04 सांसद भी सदन से बाहर चले गए.

क्या है नियम 256
1. यदि सभापति आवश्यक समझे तो वह उस सदस्य को निलंबित कर सकता है, जो सभापीठ के अधिकार की अपेक्षा करे या जो बार-बार और जानबूझकर राज्य सभा के कार्य में बाधा डालकर राज्य सभा के नियमों का दुरूपयोग करे

2. सभापति सदस्य को राज्य सभा की सेवा से ऐसी अवधि तक निलम्बित कर सकता है जबतक कि सत्र का अवसान नहीं होता या सत्र के कुछ दिनों तक भी ये लागू रह सकता है.

3. निलंबन होते ही राज्यसभा या लोकसभा सदस्य को तुरंत सदन से बाहर जाना होगा.

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लोकसभा में स्मोक क्रैकर से साथ घुसे आरोपियों के मास्टरमाइंड ललित झा पर पुलिस जांच का फोकस. (Image:IANS)

राज्यसभा में नियम 255 के तहत निलंबन कैसे होता है
– अगर सभापति को लगता है कि किसी सदस्य को व्यवहार घोर अव्यवस्थापूर्ण है तो वो उसे राज्य सभा से चले जाने का निर्देश दे सकता है. ये नियम के तहत निलंबन केवल उसी दिन के लिए लागू रहेगा. उसमें उस सदस्य को सदन से बाहर रहना होगा.

क्या ये निलंबन वापस भी हो सकता है
– हां, लेकिन ये भी राज्यसभा के सभापति की मर्जी पर होगा. निलंबित सदस्यों के माफी मांगने पर भी इसे वापस लिया जा सकता है. वैसे संस्पेंशन के खिलाफ प्रस्ताव भी सदन में लाया जा सकता है. अगर ये पास हो गया तो निलंबन खुद ब खुद हट जाएगा.

लोकसभा में निलंबन किस नियम से होता है
– लोकसभा में नियम 373 और 374 के जरिए स्पीकर ये अधिकार हासिल होता है.लोकसभा के नियम नंबर-373 के मुताबिक- अगर लोकसभा स्पीकर को ऐसा लगता है कि कोई सांसद लगातार सदन की कार्रवाई बाधित करने की कोशिश कर रहा है तो वह उसे उस दिन के लिए सदन से बाहर कर सकता है, या बाकी बचे पूरे सेशन के लिए भी सस्पेंड कर सकता है. इसी नियम के तहत लोकसभा से कांग्रेस के 04 सांसदों का निलंबन स्पीकर ओम बिरला ने किया है.

नियम 374 क्या कहता है?
अगर स्पीकर को लगता है कि कोई सदस्य बार-बार सदन की कार्रवाई में रुकावट डाल रहा है तो उसे बाकी बचे सेशन के लिए सस्पेंड कर सकता है.

क्या इसे चुनौती दी जा सकती है
– नहीं इस निलंबन को अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती, क्योंकि ये मामला संसद के अनुशासन से संबंधित होता है और ये न्यायालय के कार्यक्षेत्र में नहीं आता.

सांसदों के सस्पेंशन के कुछ चर्चित मामले
– जनवरी 2019-स्पीकर सुमित्रा महाजन ने TDP और AIADMK के कुल मिलाकर 45 सांसदों को सस्पेंड किया था.
– फरवरी 2014 –सदन में तेलंगाना को अलग राज्य का दर्जा देने या ना देने को लेकर बहस चल रही थी. इसी बीच बवाल करने वाले 18 सांसदों को स्पीकर मीरा कुमार ने सस्पेंड कर दिया था.
– मार्च1989 – उस वक्त राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे. अनुशासनहीनता के मामले में 63 सांसद निलंबित किए गए थे.

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