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7 महीने की गर्भवती महिला को हुआ खतरनाक कैंसर, जिंदगी के बचे बस कुछ दिन, कोर्ट से मांगी अबॉर्शन की इजाजत, फिर…

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हाइलाइट्स

एक महिला ने घातक कैंसर के कारण अबॉर्शन का विचार छोड़ दिया.
महिला ने अबॉर्शन की मंजूरी के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दी थी.
. बाद में डॉक्टरों की समिति की राय पर महिला ने अबॉर्शन नहीं कराने का फैसला किया.

मुंबई. एक 33 साल की महिला को अपनी लगभग 28 हफ्ते की गर्भावस्था के बाद घातक कैंसर (Cancer) का पता चला. डॉक्टरों ने उसकी जिंदगी के महज 3-6 महीने बचे होने की बात कही है. महिला ने पहले अबॉर्शन (Abortion) की मंजूरी के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) में याचिका दी थी. मगर अब उसने अपनी याचिका को आगे नहीं बढ़ाने का फैसला किया है. जेजे अस्पताल के डॉक्टरों के एक पैनल ने बॉम्बे हाईकोर्ट को बताया कि इस अवस्था में अबॉर्शन का यह कदम बहुत जोखिम भरा है क्योंकि महिला की घातक कैंसर की बीमारी अंतिम चरण में है. ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक जस्टिस रेवती मोहिते-डेरे और जस्टिस गौरी गोडसे ने गुरुवार को इस याचिका का निपटारा कर दिया.

बॉम्बे हाईकोर्ट को महिला के पति ने वकील कंचन पवार के जरिये बताया गया कि वे डॉक्टरों की समिति की राय को कबूल करते हैं और अबॉर्शन नहीं कराने का फैसला किया है. जजों ने कहा कि मेडिकल रिपोर्ट में मरीज की जीवन की उम्मीद 3-6 महीने के बीच बताई गई है. उसके संबंध में याचिकाकर्ता के वकील अपनी याचिका पर जोर नहीं दे रहे हैं. मेडिकल पैनल की रिपोर्ट में कहा गया है कि उस समय तक महिला या उसके भ्रूण का जीवित रहना असंभव है. इस दंपति ने महिला की 26 हफ्ते की गर्भावस्था को खत्म करने की अनुमति देने के लिए पहले बॉम्बे हाई कोर्ट का रुख किया था.

उस समय महिला को हाल ही में गालब्लैडर के गंभीर कैंसर का पता चला था, जो शरीर के अन्य हिस्सों में फैल गया था. उनकी याचिका में कहा गया है कि नवंबर में पेट में असहनीय दर्द के कारण वह डॉक्टर के पास गईं. एमआरआई रिपोर्ट में एक ट्यूमर का पता चला और उसकी बायोप्सी रिपोर्ट में उसके लीवर के बाएं लोब में कैंसर का पता चला. टाटा मेमोरियल अस्पताल में उन्हें पित्ताशय में कैंसर की बीमारी का पता चला जो कि लिवर तक फैल गई थी. डॉक्टरों ने दंपति को बताया कि महिला की गर्भावस्था के कारण वे उसका कैंसर का इलाज नहीं कर सकते और उसे रोग के बिगड़ने का कारण बताया.

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दंपति को गर्भावस्था को खत्म करने की संभावित जरूरत के बारे में भी बताया गया क्योंकि इसके जारी रहने से मां और भ्रूण के जीवन को खतरा हो सकता है. 11 दिसंबर को जजों ने मेडिकल कमेटी को महिला की जांच करने का निर्देश दिया. समिति की 13 दिसंबर की रिपोर्ट में कहा गया है कि महिला पित्ताशय की थैली के अलावा लिवर के कैंसर से पीड़ित है. जिसमें रोगी का जीवन महज 3 से 6 महीने से भी कम है. समिति ने कहा कि मरीज महिला और भ्रूण का पूरे समय तक जीवित रहना असंभव है. महिला बीमारी के अंतिम चरण में है. जिससे गर्भपात बहुत खतरनाक हो सकता है.

Tags: Abortion, Bombay high court, Cancer

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