India-Pakistan War 1971: भारत-पाकिस्तान युद्ध 1971 के दौरान लड़ा गया बैटल ऑफ डेरा बाबा नानक सबसे कठिन लड़ाइयों में एक थी. दरअसल, भारत-पाक सीमा पर रावी किनारे बसा डेरा बाबा नानक शहर सामरिक दृष्टि से काफी अहम था. डेरा बाबा नानक एक ऐसा शहर था, जहां से अमृतसर, बटला, ब्यास और गुरदासपुर जैसे महत्वपूर्ण शहर की दूरी 50 किमी के भीतर थी. इस शहर की महत्ता को समझते हुए पाकिस्तान लगातार डेरा बाबा नानक शहर पर कब्जा करने की कोशिश में लगा हुआ था.
यहां आपको बता दें कि भारत-पाकिस्तान के बीच बंटवारे से पहले अमृतसर से पाकिस्तान के नरोवाल के बीच एक रेलवे लाइन बिछाई गई थी. यह रेलवे लाइन अमृतसर से चलकर फतेहगढ़ चुरियन, रामदास, डेरा बाबा नानक, करतारपुर साहिब (पाकिस्तान) होते हुए पाकिस्तान के नरोवाल शहर तक जाती थीं. डेरा बाबा नानक में रावी नदी को पार करने के लिए एक रेलवे ब्रिज मौजूद था. पाकिस्तानी सेना लगातार रावी नदी पर बने रेलवे ब्रिज के रास्तेे भारत में घुसने की कोशिश में लगी हुई थी.
पाकिस्तानी सेना को यह भी डर था कि भारतीय सेना भी इसी रास्ते से पाकिस्तान में दाखिल हो सकती है, लिहाजा उसने अपनी तरफ मौजूद रेलवे की इमारतों को अभेद्य किले में तब्दील कर दिया था. पाकिस्तानी सेना ने अपने इस अभेद्य किले को अत्याधुनिक मशीनगनों, टैंकरोधी हथियारों, पिलबॉक्सो से लैस किया हुआ था. इसके अलावा, बंकरों को जोड़ने वाली सुरंगों के जरिए पूरे इलाके में बारूद बिछा दी गई थी. पाकिस्तानी सेना वहां मौजूद रेलवे के सिग्नल टॉवरों का इस्तेमाल वॉच टावर और भारतीय सेना पर हमले के लिए कर रही थी.
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डोगरा रेजिमेंट ने सिखाया पाक सैनिकों को सबक
पाकिस्तान के नापाक इरादों को भांपते हुए भारतीय सेना ने ब्रिगेडियर गौरी शंकर के नेतृत्व में 86 इन्फैंट्री ब्रिगेड को पहले ही डेरा बाबा नानक में तैनात कर दिया था. दुश्मन की तरफ से हमले की शुरूआत के बाद भारतीय सेना ने अपनी जवाबी कार्रवाई शुरू की. डोगरा रेजिमेंट की 10वींं बटालियन तमाम अडचन को नरअंदाज करते हुए दुश्मन के किले की तरफ बढ़ चली. 5 दिसंबर 1971 की शाम करीब 5.30 बजे डोगरा रेजिमेंट की 10वींं बटालियन ने दुश्मन पर पहला हमला किया.
वहीं, दुश्मन की ताकत को देखते हुए 21 टैंकों में सवार 420 सैनिकों को मैदान-ए-जंग की तरफ रवाना कर दिया गया. लेकिन, रावी नदी के किनारे की दलदली जमीन और उल्टी पड़ी गाडि़यों ने भारतीय सेना के टैंकों का रास्ता रोक लिया. परिस्थिति विपरीत होने के बावजूद भारतीय जांबाजों का मनोबल नहीं टूटा. भारतीय जांबाज टैंको को वहीं छोड़ अपने हथियार लेकर पैदल ही दुश्मन की तरफ बढ़ चले. दुश्मन की गोलीबारी और तमाम अड़चनों के बावजूद भारतीय जांबाज 5 किमी का सफर तय दुश्मन के दरवाजे तक पहुंचने में सफल हो गए.
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अभेद्य किले को ध्वस्त कर भारतीय जांबाजों ने पाक बंकरों पर किया कब्जा
भारी गोलीबारी का सामना करते हुए दुश्मन के गढ़ की तरफ बढ़ रहे डोगरा रेजिमेंट के जांबाज एक-एक कर पाकिस्तानी सेना के बंकरों को नेस्तनाबूद कर रहे थे. इस युद्ध में डोगरा रेजिमेंट की अगुवाई कर रहे लेफ्टिनेंट कर्नल नरिंदर सिंह संधू पैर में गोली लगने की वजह से जख्मी हो गए. बावजूद इसके, अपनी जिंदगी की पहरवार किए बगैर वह दुश्मन से मोर्चा लेते रहे. दुश्मन अपने जिस किले को अभी तक अभेद्य मान रहा था, भारतीय जांबाजों ने उस किले को ताश के पत्तों की तरह ढहा दिया.
कुछ समय बाद, डोगरा रेजिमेंट के जांबाजों ने दुश्मन के इस गढ़ को पूरी तरह से अपने कब्जे में ले लिया. बैटल ऑफ डेरा बाबा नानक में भारतीय जांबाजों ने दुश्मन के 34 सैनिकों को मार गिराया था और 26 को युद्ध बंदी बना लिया था. इसके अलावा, भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना के कब्जे से भारी तादाद में आसीएल गन, 57 एमएम आरसीएल गन, स्टेन गन, एमएमजी, मोर्टार, राइफल्स और एलएमजी भी जब्त की थीं.
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FIRST PUBLISHED : December 16, 2023, 03:53 IST
