Battle of Bogura: भारत-पाक युद्ध 1971 में लड़ी गई ‘बैटल ऑफ बोगरा’ सबसे लंबी लड़ाइयों में एक थी. यह एक ऐसी लड़ाई थी, जो युद्ध की आधिकारिक घोषणा से पहले शुरू होकर युद्ध के समाप्ति की घोषणा के बाद तक चली थी. दस्तावेजों में दर्ज तारीखों के अनुसार, बैटल ऑफ बोगरा 23 नवंबर 1971 से शुरू होकर 18 दिसंबर 1971 तक चला था, जबकि 1971 के भारत-पाक युद्ध के समाप्ति की घोषणा 16 दिसंबर 1971 को ही हो गई थी.
बैटल ऑफ बोगरा शायद एकलौती ऐसी लड़ाई थी, जो रिहाइशी इलाके में लड़ी गई थी. इस लड़ाई के खत्म होने के बाद पाकिस्तानी सेना के अत्याचारों से आजिज आ चुकी बांग्लादेश की जनता ने पाक सेना के ब्रिगेडियर को सड़क पर दौड़ा दौडा कर पीटा था. इसके बाद, पाकिस्तानी सेना की तरफ से खासतौर पर भेजे गए मेजर जनरल रैंक के अधिकारी ने भारतीय सेना मेजर जनरल लक्ष्मण सिंह के सामने हथियार डाल आत्मसमर्पण कर दिया था.
सामरिक नजरिए से बेहद महत्वपूर्ण थी बोगरा की लड़ाई
सामरिक द्रष्टि से बोगरा शहर पाकिस्तानी सेना के लिए बहुत महत्वपूर्ण था. दरअसल, पाकिस्तानी सेना ने पूर्वी पाकिस्तान (मौजूदा बांग्लादेश) के बोगरा शहर को अपना सामरिक मुख्यालय बना रखा था. इसी शहर में पाक सेना की 16 इन्फैंट्री डिवीजन और 205 इन्फैंट्री ब्रिगेड का बेस था. रेल, सड़क और ऑपरेशनल एयर स्ट्रिप के जरिए पूर्वी पाकिस्तान के अन्य हिस्सों से जोड़ने वाला उत्तर पश्चिम क्षेत्र में बसा बोगरा शहर पाक सेना का महत्वपूर्ण संचार केंद्र भी था.
पाकिस्तान ने इस शहर को अपने लॉजिस्टिक बेस के रूप में तैयार किया था. बैटल ऑफ बोगरा में जीत के बिना पाक सेना को घुटनों पर लाना आसान नहीं था. दरअसल, सामरिक द्रष्टि से बेहद महत्वपूर्ण बोगरा शहर से पाक सेना को सामरिक और सैन्य मदद के साथ रसद मुहैया कराया जा रहा था. भारतीय सेना इस शहर पर कब्जा कर पाक सेना को मिलते वाली रसद और सैन्य मदद को ठप्प कर पूर्वी पाकिस्तान के शेष हिस्सों से दुश्मन का संपर्क खत्म करना चाहती थी.
मेजर जनरल लक्ष्मण सिंह को मिली वोगरा पर जीत की जिम्मेदारी
पाकिस्तान को इस बात का अंदाजा था कि भारतीय सेना बोगरा शहर पर कभी भी चढ़ाई कर सकती थी. लिहाजा, पाकिस्तान ने अपने सबसे खूंखार ब्रिगेडियर तजम्मुल हुसैन मलिक की अगुवाई में 205 इन्फैंट्री ब्रिगेड को तैनात किया था. 32 बलूच, 8 बलूच और 4 फ्रंटियर फोर्स भी ब्रिगेडियर तजम्मुल की ब्रिगेड का हिस्सा थीं. भारतीय सेना को रोकने के लिए ब्रिगेडियर तजम्मुल ने शहर को किले में तब्दील कर स्निपिंग और एम-24 चाफ़ी टैंकों को तैनात कर दिया था.
वहीं, बोगरा पर भारतीय परचम लहराने की जिम्मेदारी 20 माउंटेन डिवीजन का नेतृत्व कर रहे मेजर जनरल लक्ष्मण सिंह को दी गई. पाक सेना को संभलने का एक भी मौका न मिले, इसके लिए भारतीय सेना ने दो तरफ से बोगरा शहर पर चढ़ाई कर दी. शहर के दक्षिण और दक्षिण पूर्व छोर से भारतीय सेना की 5/11 गोरखा राइफल्स ने चढ़ाई शुरू की, तो 6 गार्ड्स और 69 आर्म्ड रेजिमेंट ने टी-55 टैंकों के साथ बोगरा शहर के दूसरे छोर से हमला कर दिया.
भारतीय जांबाजों ने नाकाम की ब्रिगेडियर तजम्मुल की हर कोशिश
ब्रिगेडियर तजम्मुल हुसैन मलिक की तमाम कोशिशें भारतीय जांबाजों के सामने नाकाम साबित हुईं. भारतीय सेना के टैंकों ने पाक सेना की तमाम चौकियों को देखते ही देखते जमींदोज कर दिया. वहीं, भारतीय सेना के जांबाज एक के बाद एक सामरिक इलाकों से पर कब्जा कर लिया था. पाक सेना की तमाम महत्वपूर्ण इमारते अब भारतीय सेना के कब्जे में थीं. हर मोर्चे पर हार चुकी पाकिस्तानी सेना के सामने अब घुटने टैकने के सिवा कोई विकल्प नहीं बचा था.
मेजर जनरल जेबीएस यादव ने अपने एक लेख में बैटल ऑफ बोगरा का जिक्र किया है. उन्होंने अपने लेख में लिखा है कि 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में बोगरा की लड़ाई शायद इकलौती ऐसी लड़ाई थी, जिसे रिहायशी इलाकों में लड़ा गया था. इस लड़ाई में पाकिस्तानी सेना ने क्रूरता की सारी हदें पार कर दी थी. हर इंच जमीन के लिए लड़ी गई इस लड़ाई में 5/11 गोरखा राइफल्स के हर एक जांबाज की बहादुरी हमेशा याद की जाएगी. इस लड़ाई में भारतीय सेना की जीत ऐतिहासिक थी.
पाक सेना का समर्पण और भाग रहे पाक ब्रिगेडियर की पिटाई
बैटल ऑफ बोगरा में सबसे पहले 205 इन्फैंट्री ब्रिगेड के सूबेदार सरकार, 32 बलूच के कमांडर मेजर रजा और मेजर जनरल राव अली ने सरेंडर कर दिया. 16 दिसंबर 1971 को दोपहर करीब 2 बजे तक पाक सेना के 54 जूनियर कमीशंड ऑफिसर, 48 अधिकारी और विभिन्न रैंक के 1538 अधिकारियों ने 79 एलएमजी, 1030 राइफल और 238 स्टेन गन के साथ भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था.
ब्रिगेडियर तजम्मुल हुसैन मलिक द्वारा आत्मसमर्पण करने से इनकार करने पर मेजर जनरल नज़र हुसैन शाह को खासतौर पर सरेंडर करने के लिए भेजा गया था. मेजर जनरल नज़र ने पूरी 16 इन्फैंट्री डिवीजन के साथ भारतीय मेजर जनरल लक्ष्मण सिंह के सामने सरेंडर किया था. वहीं, अपने एस्कार्ट के साथ नटोर भागने की कोशिश कर रहे ब्रिगेडियर तजम्मुल हुसैन मलिक को स्थानीय लोगों ने पकड़ लिया और फिर सड़क पर दौड़ा-दौड़ा कर पीटा. जनता ने ब्रिगेडियर तजम्मुल हाथ-पैर तोड़ कर मुक्ति वाहिनी को सौंप दिया. बाद में, मुक्ति वाहिनी ने ब्रिगेडियर तजम्मुल को युद्धबंदी के तौर पर भारतीय सेना को सौंप दिया था.
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FIRST PUBLISHED : December 15, 2023, 23:02 IST
