शिमला. हिमाचल प्रदेश में कुछ ही साल बाद अस्पताल में एक ऐसी डॉक्टर नजर आएंगी, जो व्हील चेयर पर बैठकर मरीजों का इलाज करेंगी. सूबे के कांगड़ा जिला के नगरोटा बगवां की रहने वाली 19 वर्षीय दिव्यांग छात्रा निकिता चौधरी हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) की पहली व्हील चेयर यूजर डॉक्टर (Doctors) बनेंगी. चलने फिरने में पूरी तरह से अक्षम निकिता को कड़े संघर्षों और हाईकोर्ट के आदेशों के बाद मेडिकल कॉलेज में दाखिला मिला. तमाम परेशानियों के बीच निकिता कांगड़ा स्थित मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस की पढ़ाई कर रही हैं और उनका संघर्ष अभी भी जारी है. निकिता जब पांचवी क्लास में थी तबसे व्हील चेयर के सहारे ही है.
निकिता के परिवार में उनकी मां, पिता और भाई है. निकिता के साथ उनकी मां शकुंतला का भी संघर्ष जारी है. मां ने समाज में कई तरह की बातों को झेला, कुछ लोगों ने कहा कि आपकी बेटी कभी ठीक नहीं हो सकती, ये जीवन में कुछ नहीं कर सकती, इसलिए तीसरी संतान पैदा कर लो लेकिन मां ने हिम्मत नहीं हारी, सामाजिक और आर्थिक परेशानियों के बीच अपनी दिव्यांग बेटी के उज्ज्वल भविष्य के लिए सब कुछ दांव पर लगा दिया, जिसका परिणाम ये है कि आज उनकी बेटी एमबीबीएस की पढ़ाई कर रही है, चार साल बाद डॉक्टर बन जाएगी.
गुरुवार को शिमला में राजभवन में उमंग फाउंडेशन के कार्यक्रम ‘हौसलों की उड़ान’ में राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल ने निकिता समेत अन्य प्रतिभाशाली दिव्यांग युवाओं को सम्मानित किया. News 18 से खास बातचीत में निकिता ने बताया कि वो एक ऐसी बीमारी से ग्रसित हैं. जो, जन्म के कुछ समय के बाद बढ़ती जाती है. जन्म के बाद कुछ समय तक सामान्य बच्चों की तरह ही थीं. कुछ साल चलती फिरती भी लेकिन जैसे जैसे बड़ी होती गई, चलना फिरना बंद होता गया. निकिता चौधरी ने बताया कि इस बीमारी में बच्चे के मसल बहुत कमजोर हो जाते हैं, चलना फिरना बिलकुल बंद हो जाता है और व्हील चेयर का सहारा लेना पड़ता है. निकिता की मां उनकी हर चीज का ख्याल रखती हैं.
पिता चाहते थे वकील बनूः निकिता
निकिता ने बताया कि उन्होंने 9वीं कक्षा में डॉक्टर बनने की ठान ली थी, हालांकि, उनके पिता राजेश चाहते थे कि वो वकील बने लेकिन उन्होंने अपनी बेटी पर अपना इच्छा नहीं थोपी और हर तरह से बेटी की मदद की. निकिता ने बताया कि साल 2022 में पहली बार में ही नीट की परीक्षा पास कर ली थी, लेकिन मेडिकल कॉलेज ने उन्हें दाखिला देने से इनकार कर दिया और उन्हें एमबीबीएस के लिए अयोग्य ठहरा दिया. कुछ दिनों तक काफी निराश रही और एक समय हार मान ली थी.

शिमला में राजभवन में गवर्नर शिव प्रताप शुक्ल ने निकिता को सम्मानित किया.
निकिता ने बताया कि उस समय विधानसभा के चुनाव चल रहे थे तो उस वक्त के कांग्रेस के प्रत्याशी और वर्तमान में पर्यटन विकास बोर्ड के अध्यक्ष रघुवीर सिंह बाली उनके घर आए. व्यक्तिगत तौर पर मदद का भरोसा दिया, काफी मदद भी की. रघुवीर सिंह बाली ने अपनी चचेरी बहन, जो वकील हैं, उनको भी मदद के लिए कहा. इस बीच निकिता की मां को किसी ने एचपीयू के पूर्व प्रोफेसर और उमंग फाउंडेशन के अजय श्रीवास्तव से बात करने के लिए कहा. प्रो. अजय श्रीवास्तव लंबे समय से दिव्यांगों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं और समाजसेवा के कार्यों से भी जुड़े हैं. प्रो. अजय श्रीवास्तव के साथ साथ हमीरपुर के रहने वाले आरटीआई एक्टिविस्ट देवाशीष भट्टाचार्य और हाई कोर्ट के अधिवक्ता संजीव भूषण ने काफी मदद की.

निकिता के परिवार में उनकी मां, पिता और भाई है.
हाईकोर्ट तक गई लड़ाई
निकिता ने बताया कि इन सभी की मदद से एमबीबीएस में दाखिले के लिए के हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, हाई कोर्ट ने एक अलग मेडिकल बोर्ड से पीजीआई चंडीगढ़ में डिसेविलिटी टेस्ट करवाया, बोर्ड ने उनकी डिसेविलिटी को 78 प्रतिशत बताया. उसके बाद निकिता को टांडा मेडिकल कॉलेज में दाखिला मिला. अभी निकिता एमबीबीएस की फर्स्ट ईयर की स्टूडेंट हैं और जनवरी में उनका सेकिंड ईयर शुरू होगा.
हॉस्टल में सुविधाएं नहीं, मां जाती है साथ
निकिता ने बताया कि हालांकि पहले भी उन्होंने यहीं से टेस्ट करवाकर सर्टिफिकेट लिया था, लेकिन शायद असमंजस के चलते मेडिकल कॉलेज ने उन्हें एमबीबीएस में दाखिले के लिए अयोग्य ठहराया था. निकिता ने बताया कि उनके पास वो व्हील चेयर है, उसकी कीमत 50 हजार रुपये. है, ये चेयर भी उन्हें किसी ने गिफ्ट की है. उन्होंने बताया कि संघर्ष अभी भी जारी है. मेडिकल कॉलेज उनसे फीस वसूल रहा है जबकि हाई कोर्ट के आदेशों के अनुसार दिव्यांग छात्रों से फीस नहीं ली जा सकती. कॉलेज और हॉस्टल में दिव्यांगों के लिए ज्यादा सुविधाएं नहीं हैं, इसलिए निकिता हॉस्टल के बजाए किराए के कमरे में रह रही हैं. उनकी मां हर रोज कॉलेज लेकर जाती हैं और वापस लेकर आती हैं. राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल ने भरोसा दिया है कि वो इस मामले में हस्तक्षेप करेंगे. साथ ही अब तक दी हुई फीस भी वापस दिलवाएंगें. साथ ही अच्छी व्हील चेयर भी देंगे. निकिता की मां ने बताया कि सालाना 60 हजार रुपये फीस है और एग्जामिनेशन फीस अलग से दी जाती है.
खुद पर भरोसा करना पड़ता है-निकिता
निकिता रेडियोलॉजी या डरमेटोलॉजी की स्पेशलिस्ट बनना चाहती हैं. निकिता का कहना है कि अपने सपने को पूरा करने के लिए सबसे पहले खुद को प्रेरित करना पड़ता है, हिम्मत रखनी पड़ती है और लगातार संघर्ष करना पड़ता है, जब आप दृढ़ निश्चय कर लेते हैं, तभी दूसरे आपकी मदद करते हैं. समाज में कई तरह की परेशानियां हैं, कई तरह के लोग हैं जो आपको हत्तोसाहित करते हैं लेकिन खुद पर भरोसा रखना होता है, कड़ी मेहनत और लग्न से कोई भी मुकाम हासिल किया जा सकता है.
मां को बेटी पर है गर्व
निकिता की मां शकुंतला को अपनी बेटी पर गर्व है. उन्होंने बताया कि जब ये छोटी थी तो लोगों ने कई तरह की बातें की, कभी कभी दुख भी होता था लेकिन निकिता ने कभी ऐसा महसूस नहीं होने दिया. निकिता ने दसवीं और 12वीं में भी टॉप किया था. कई बार आर्थिक तंगी का भी सामना करना पड़ा. आज मां निकिता के साथ टांडा में किराए का कमरा लेकर रह रही हैं और निकिता के पिता गांव में रहते हैं. शकुंतला हंसते हुए कहती हैं कि उनकी बेटी अब कहती है कि ममा-पापा अब आप चिंता न करो. आपके हर सपने मैं पूरा करूंगी.राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल ने कहा कि दिव्यांग छात्र प्रेरणा के स्त्रोत हैं, इन्हें सम्मानित करते हुए लगता है कि जैसे मैं सम्मानित हो रहा हूं. उन्होंने कहा कि दिव्यांग छात्रों की हर तरह की मदद की जाएगी.
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FIRST PUBLISHED : December 15, 2023, 13:34 IST
