केरल हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में सरकारी नौकरी में महिलाओं के लिए अवसर पाने के संदर्भ में पुरुषों से उनके जैविक मतभेदों के कारण होने वाले नुकसान पर टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा है कि सरकारी नौकरी से संबंधित नियमों में गर्भवती महिलाओं और युवा मदर्स की चिंताओं को शामिल किया जाना चाहिए, ताकि उन्हें भेदभाव का सामना न करना पड़े.
न्यायमूर्ति ए. मोहम्मद मुस्ताक और शोबा अन्नम्मा ईपेन की खंडपीठ ने कहा कि सरकारी नौकरी के अवसरों के संबंध में पुरुषों के साथ समान स्तर पर खड़े होने के बावजूद महिलाओं से जैविक अंतर, जैसे कि मातृत्व और अप्रत्यक्ष भेदभाव होता है. हाईकोर्ट की पीठ ने यह टिप्पणी करते हुए कहा कि कानून और सरकारी नौकरी से जुड़े नियमों और मातृत्व के आधार पर महिलाओं की वास्तविकता को देखना चाहिए. कोर्ट ने कहा है कि ऐसी स्थितियां उत्पन्न हो सकती हैं, जिनका सामना महिलाओं को गर्भवती होने के कारण पड़ सकता है, जिसका जवाब उन्हें समय-सीमा की योजना के कारण उचित अवसर देने की अनुमति देकर नहीं दिया जा सकता है, जिसे प्राथमिकता देने की आवश्यकता है.
हाईकोर्ट ने दो युवा महिला डॉक्टरों की याचिका पर सुनवाई करते हुए ये टिप्पणी की, जिन्होंने एमडी रेडियो डायग्नोसिस में पोस्ट ग्रेजुएशन के दौरान मां बनने का फैसला लिया, जिसके कारण उनका सीनियर रेजीडेंसी की पढ़ाई देरी से शुरू हुई और उन्हें जनवरी 2024 तक कोर्स पूरा करना था. इस दौरान, केरल राज्य लोक सेवा आयोग (पीएससी) ने 9 खाली पदों के लिए रेडियो डायग्नोसिस में सहायक प्रोफेसर के पद के लिए नौकरी निकाली, जिसमें पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री प्राप्त करने के बाद एनएमसी-मान्यता प्राप्त मेडिकल कॉलेज में रेडियो डायग्नोसिस में सीनियर रेजिडेंट के रूप में एक वर्ष का अनुभव होना जरूरी था. चूंकि याचिकाकर्ता अपना पोस्ट ग्रेजुएशन जनवरी 2024 तक ही पूरा करेंगे, इसलिए वह इस पीएससी द्वारा निकाली गई नौकरी के लिए आवेदन नहीं कर पाए, क्योंकि आवेदन प्राप्त होने की अंतिम तिथि तक उनके पास निर्धारित योग्यता नहीं थी.
जब याचिकाकर्ताओं को सरकार या केरल प्रशासनिक न्यायाधिकरण से कोई सही जवाब नहीं मिला तो उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. कोर्ट ने पहले एक अंतरिम आदेश के जरिए याचिकाकर्ताओं को समय सीमा से पहले पद के लिए आवेदन करने की अनुमति दी थी, जिसके अनुसार उन्होंने आवेदन किया था. यह देखते हुए कि यह मामला सरकारी नौकरी के क्षेत्र में महिलाओं के सामने आने वाली एक अजीब समस्या प्रस्तुत करता है.
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याचिकाकर्ताओं ने इस केस में जिन्हें पार्टी बनाया था कोर्ट ने उनसे जवाब मांग था कि क्या मां बनने से सरकारी नौकरी में आकांक्षाओं से इनकार किया जाएगा और क्या महिलाओं को करियर और मातृत्व के बीच चयन करने के लिए मजबूर किया जाना चाहिए? कोर्ट का विचार था कि उपरोक्त प्रश्नों को वास्तविक समानता की कसौटी पर निर्धारित किया जाना चाहिए जो ‘स्थान के निर्माण, लिंग विशेषताओं में मौजूद बाधाओं को दूर करने और मतभेदों को समायोजित करने’ की अनुमति देता है.
इसमें हाईकोर्ट ने आगे टिप्पणी की कि एक महिला के प्रजनन अधिकार, जिसमें मातृत्व भी शामिल है, संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का हिस्सा है और मातृत्व महिलाओं की गरिमा का अभिन्न अंग है. इसमें कहा गया है कि मातृत्व भी जटिल नुकसान पैदा करता है. इसके परिणामस्वरूप लिंग अंतर हो सकता है. मातृत्व के कारण होने वाले नुकसान पर विचार न करने से भेदभाव होगा.
कोर्ट ने कहा कि इस प्रकार सरकारी नौकरी से संबंधित नियमों और मातृत्व के आधार पर महिलाओं की वास्तविकता स्थिति, महिलाओं के व्यक्तिगत अधिकारों और सरकारी नौकरी के बड़े हित को संतुलित करने के लिए कानूनी नियमों का आह्वान किया. कोर्ट ने कहा कि इस मामले में रेजीडेंसी प्रोग्राम का एक्सपीरियंस लेटर जमा करने की अंतिम तिथि उन लोगों के लिए बढ़ा दी गई थी जिनका मातृत्व अवकाश के चलते कोर्स प्रभावित हुआ था, तो महिलाओं के सामने आने वाली दिक्कतों को आसानी से दूर किया जा सका.
पीठ ने स्पष्ट किया कि इस तरह की प्रैक्टिस के जरिए वह केवल ऐसे उम्मीदवारों के दावे को सही करने की कोशिश की गई और इस तरह की नौकरी के लिए कोई एक्सपीरियंस लेटर देने के लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की गई. कोर्ट ने कहा कि सरकारी नौकरी के मामले में अपेक्षित योग्यताओं पर जोर देकर सार्वजनिक हित को संतुलित करना और मौलिक अधिकारों के लिए की रक्षा करना है. हाईकोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश को पूर्ण बना दिया और ट्रिब्यूनल के लागू आदेशों को रद्द कर दिया. हालांकि यह स्पष्ट किया गया कि याचिकाकर्ताओं को पीएससी द्वारा निर्धारित समय के भीतर अनुभव प्रमाण पत्र प्रस्तुत करना होगा.
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Tags: Kerala High Court, Pregnant woman
FIRST PUBLISHED : December 14, 2023, 13:31 IST
