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केंद्र ने लोकसभा में संशोधित आपराधिक सुधार विधेयक पेश किया, क्या बदला है और क्यों? जानें

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हाइलाइट्स

मंगलवार को लोकसभा में तीन संशोधित आपराधिक सुधार विधेयक पेश किए गए.
अगस्त में लोकसभा में पेश तीन विधेयकों को एक स्थायी समिति को भेज दिया गया था.
बृज लाल की अध्यक्षता वाली समिति ने विधेयकों में कई महत्वपूर्ण बदलावों का प्रस्ताव रखा था.

नई दिल्ली. केंद्र सरकार ने इस साल अगस्त में पेश किए गए आपराधिक सुधार विधेयकों को वापस लेते हुए मंगलवार को लोकसभा में तीन संशोधित आपराधिक सुधार विधेयक पेश किए. 11 अगस्त को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (मूल रूप से 1898 में अधिनियमित) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 को बदलने के लिए लोकसभा में तीन विधेयक पेश किए थे. आईपीसी को बदलने के लिए भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023, सीआरपीसी के लिए भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) 2023, और भारतीय साक्ष्य अधिनियम के लिए भारतीय साक्ष्य (BS) विधेयक, 2023 को बाद में उसी दिन एक स्थायी समिति को भेज दिया गया.

‘इंडियन एक्सप्रेस’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक भाजपा सांसद बृज लाल की अध्यक्षता वाली समिति ने विधेयकों में कई महत्वपूर्ण बदलावों का प्रस्ताव रखा. इसके बाद केंद्र ने संसद के शीतकालीन सत्र में संशोधित आपराधिक कानून विधेयकों को फिर से पेश किया. हालांकि नए विधेयक में कई सिफारिशों पर विचार नहीं किया गया है. गंभीर अपराधों के आरोपियों के भागने को रोकने और गिरफ्तारी के दौरान पुलिस अधिकारियों और कर्मचारियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बीएनएसएस के खंड 43(3) में अनुमति के मुताबिक हथकड़ी के उपयोग का गृह मामलों की संसदीय स्थायी समिति द्वारा स्वागत किया गया था. हालांकि पैनल ने सुझाव दिया कि इसे ‘आर्थिक अपराध’ करने वाले व्यक्तियों तक बढ़ाने के बजाय बलात्कार और हत्या जैसे चुनिंदा जघन्य अपराधों तक ही सीमित रखा जाना चाहिए.

आर्थिक अपराधों में हथकड़ी लगाना जायज नहीं
ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि ‘आर्थिक अपराध’ शब्द में छोटे से लेकर गंभीर अपराधों की एक बड़ी श्रृंखला शामिल है. इसलिए इस आर्थिक अपराधों के तहत आने वाले सभी मामलों में हथकड़ी लगाना जायज नहीं हो सकता है. पैनल ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि ‘इसलिए समिति सिफारिश करती है कि खंड 43(3) को खंड से ‘आर्थिक अपराध’ शब्द हटाने के लिए उपयुक्त रूप से संशोधित किया जा सकता है.’ इसके अलावा पहले के बीएनएसएस के खंड 43(3) में आदतन अपराधियों को गिरफ्तार करते समय हथकड़ी के इस्तेमाल की अनुमति दी गई थी. इनमें हिरासत से भागे या मानव तस्करी और जालसाजी जैसे विशिष्ट अपराध करने वाले अपराधी शामिल थे. ‘आर्थिक अपराधों’ को हटाने की संसदीय पैनल की सिफारिश को नए विधेयक में शामिल किया गया है.

‘राज्य के खिलाफ अपराध’ करने के लिए हथकड़ी का उपयोग अनिवार्य
पहले के बीएनएसएस में राज्य के खिलाफ अपराधों पर एक अतिरिक्त लाइन थी. जिसमें देश की संप्रभुता, अखंडता और एकता को खतरे में डालने वाले अपराध भी शामिल थे. नया प्रावधान केवल ‘राज्य के खिलाफ अपराध’ करने के लिए हथकड़ी का उपयोग करना अनिवार्य करता है. इसका मतलब यह हो सकता है कि ऐसे अपराध करने वाले लोगों को गिरफ्तार करने के लिए हथकड़ी के इस्तेमाल को और अधिक विवेकाधीन बना दिया गया है. इसके अलावा नया प्रावधान अदालत में पेश किए जाने वाले व्यक्तियों के लिए भी हथकड़ी के इस्तेमाल का विस्तार करता है.

दया याचिकाओं पर नियम
पहले बीएनएसएस की धारा 473(1) मौत की सजा काट रहे दोषियों या उनके कानूनी उत्तराधिकारियों या रिश्तेदारों को इसके लिए प्रक्रिया और समय सीमा प्रदान करते हुए दया याचिका दायर करने की अनुमति देती थी. उसका कानूनी उत्तराधिकारी या कोई रिश्तेदार 30 दिनों के भीतर राज्यपाल को दया याचिका प्रस्तुत कर सकता है. खारिज होने पर व्यक्ति 60 दिनों के भीतर राष्ट्रपति के पास याचिका दायर कर सकता है. राष्ट्रपति के आदेश के विरुद्ध किसी भी न्यायालय में अपील नहीं की जा सकेगी. पहले के प्रावधान में यह भी कहा गया था कि राज्यपाल या राष्ट्रपति के समक्ष याचिका प्रस्तुत करने से पहले इसे केंद्र या राज्य सरकार के गृह विभाग के समक्ष प्रस्तुत किया जा सकता है.

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निवारक निरोध शक्तियां
बीएनएसएस के खंड 172(2) ने निवारक कार्रवाई करते हुए पुलिस की शक्तियों को बढ़ाया. इसने पुलिस अधिकारियों को उप-धारा (1) के तहत उनके द्वारा दिए गए किसी भी निर्देश का विरोध करने, इनकार करने, अनदेखी करने या अवहेलना करने वाले व्यक्तियों को हिरासत में लेने या हटाने और उन्हें न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने ले जाने या छोटे मामलों में उन्हें रिहा करने की अनुमति दी. नया विधेयक इस प्रावधान में एक समय सीमा जोड़ता है. इसमें कहा गया है कि हिरासत में लिए गए व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के पास ले जाया जा सकता है या छोटे मामलों में, 24 घंटे के भीतर जितनी जल्दी हो सके रिहा किया जा सकता है. इसके अलावा पुराने बीएनएसएस में ‘न्यायिक मजिस्ट्रेट’ की जगह अब ‘मजिस्ट्रेट’ ने ले ली है.

Tags: CrPC, Parliament, Parliament house, Parliament news

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