अगर आप अब तक हिंदी साहित्य की दुनिया से दूर हैं, सिर्फ इसलिए क्योंकि आपको नहीं पता कि शुरुआत कैसे हो, तो हम यहां आपको कुछ ऐसी किताबों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनसे आपको हिंदी साहित्य की दुनिया से जुड़ने और उसे करीब से समझने का मौका मिलेगा. हिंदी साहित्य के पास ऐसी कई कालजयी रचनाएं हैं, जिन्हें पढ़ा जाना बेहद ज़रूरी है और शुरुआत करने के लिए इनसे बेहतर और कोई विकल्प नहीं हो सकता. तो आइए जानते हैं, उन दस चुनिंदा उपन्यासों के बारे में जिन्हें यदि आपने अब तक नहीं पढ़ा है, तो उन्हें अपनी लाइब्रेरी का हिस्सा बनाइए और पूरा का पूरा पढ़ जाइए…
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धर्मवीर भारती का उपन्यास ‘गुनाहों का देवता’ हिंदी की सबसे अधिक बिकने वाली पुस्तकों में से एक है. कई साल पहले प्रकाशित हुए इस उपन्यास की मांग कभी कम नहीं हुई, लोग आज भी इसे ढूंढ-ढूंढ कर पढ़ते हैं. इस उपन्यास के बारे में स्वयं धर्मवीर भारती ने कहा था, “मेरे लिए इस उपन्यास का लिखना वैसा रहा है, जैसे पीड़ा के समय में पूरी आस्था से प्रार्थना करना.” प्रेम, पीड़ा, आक्रोश और भ्रम का सुंदर वर्णन इस उपन्यास को अद्भुत बनाता है.
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यदि आप एक व्यंग्य पढ़ना चाहते हैं, तो ‘राग दरबारी’ को अपनी लाइब्रेरी का हिस्सा ज़रूर बनाएं. और वो भी कोई हल्का-फुल्का व्यंग्य नहीं, बल्कि यह राग उस दरबार का है, जिसमें हम देश की आज़ादी के बाद पड़े हुए हैं. गांव की कथा के माध्यम से यह उपन्यास आधुनिक भारतीय जीवन की मूल्यहीनता को उजागर करता है. उपन्यास के लिए श्रीलाल शुक्ल को 1970 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया, जिसके अब तक कई संस्करण प्रकाशित हुए हैं और इसका अनुवाद लगभग सभी भारतीय भाषाओं में किया जा चुका है.
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हिंदी साहित्य में जिन चंद कृतियों ने अपनी खास जगह बनाई है, मैला आंचल उन्हीं में से एक है. 1954-55 में इस उपन्यास का प्रकाशन एक घटना की तरह था. इसकी कथाभूमि उत्तरी- बिहार का पूर्णिया अंचल है और कथाकाल आजादी के कुछ बरस बाद का. एक सामाजिक और राजनीतिक चेतनासंपन्न लेखक की हैसियत से फणीश्वरनाथ रेणु इसमें उस परिवर्तन को बेहद बारीकी से चित्रित करते हैं, जो आज़ादी के फलस्वरूप गांवों में आया और जो सिर्फ परिवेशगत ही नहीं, व्यक्ति के मस्तिष्क में भी घट रहा था.
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हिंदी के कालजयी लेखक मुंशी प्रेमचंद के सभी उपन्यास अपने आप में बहुत ख़ास हैं, जिनका पढ़ा जाना हर हिंदी साहित्य प्रेमी के लिए ज़रूरी हो जाता है. ‘निर्मला’ प्रेमचंद के उन्हीं उपन्यासों में से एक है. बेमेल विवाह और दहेज प्रथा की मार्मिक कहानी इस उपन्यास को महिला केन्द्रित साहित्य के इतिहास में विशेष स्थान पर रखती है. जिस समय भारतीय साहित्य गंभीर और साहसिक विषयों पर नहीं लिख रहा था, उस समय में एक ऐसे उपन्यास का लिखा जाना दुस्साहस का काम था.
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महापंडित राहुल सांकृत्यायन को भारतीय यात्रा वृतांत का जनक कहा जाता है. उनकी किताब ‘वोल्गा से गंगा’ 20 ऐतिहासिक लघु कथाओं का संग्रह है, जो 6000 ईसा पूर्व से शुरू होती है और 1942 में समाप्त होती है, जिसका अर्थ ये है, कि इसकी सारी कहानियां 8000 वर्षों की अवधि और लगभग 10,000 किलोमीटर की दूरी को तय करते हुए पाठक तक पहुंचती हैं. राहुल सांकृत्यायन का ये कथा-संग्रह हिंदी के कथा-साहित्य की धरोहर होने के साथ-साथ ज्ञान-विज्ञान की अन्य शाखाओं में इतिहास-भूगोल को बारीकी से समझने के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण और प्रासंगिक है.
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‘आषाढ़ का एक दिन’ मोहन राकेश का बेहद प्रसिद्ध हिंदी नाटक है, जिसे पहला आधुनिक हिन्दी नाटक भी माना जाता है. नाटक का कथानक कालिदास और उनकी प्रेमिका मल्लिका के इर्द-गिर्द घूमता है. इस नाटक को सर्वश्रेष्ठ नाटक होने के लिए संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया, साथ ही कई प्रसिद्ध निर्देशकों ने इसका मंच के लिए निर्देशन भी किया. महाकवि कालिदास के निजी जीवन को यदि बहुत करीब से समझना है, तो इस नाटक को ज़रूर पढ़ना चाहिए.
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‘काशी का अस्सी’ को काशीनाथ सिंह ने जीने के बाद गढ़ा और स्वयं से टकराए पात्रों से परिचित होने के बाद उसे पुस्तक में ढाला है. इस संस्मरण में अस्सी घाट और वाराणसी से संबंधित कहानियां हैं. ये कहानियां 1990 के दशक की राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था की ओर इशारा करती हैं, लेकिन जब हम आज के समय को देखते हैं, तो इस संग्रह की कहानियां आज के नजरिए में भी सटीक बैठती हैं.
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‘तमस’ पद्म भूषण भीष्म साहनी का लोकप्रिय उपन्यास है, जिसमें देश के विभाजन से पहले की सामाजिक मानसिकता और उसके बाद हुए भयानक सांप्रदायिक दंगों के क्रूर और घिनौने आख्यान को चित्रित किया गया है. देश का विभाजन साहनी के जीवन की सबसे बड़ी ट्रेजडी रही, जिसे उन्होंने अपने उपन्यास ‘तमस’ में काफी बारीकी से रेखांकित किया है.
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‘आपका बंटी’ मन्नू भंडारी का वो चर्चित उपन्यास है, जिसे उनकी बेजोड़ रचनाओं में शामिल किया जाता है. यह एक कालजयी उपन्यास है. एक 9 साल का बच्चा मां-पिता के अलगाव के चलते किन परिस्थितियों का सामना करता है, इस बात का उपन्यास में मनोवैज्ञानिक तरीके से वर्णन किया गया है. उपन्यास को पढ़ते हुए कई बार कहानी को आगे पढ़ने का दिल नहीं करेगा, लेकिन बहुत भारी मन और बहादुरी के साथ इसे खत्म करने के बाद ऐसा लगता है, जैसे कोई युद्ध लड़ कर निकले हैं.
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अमृता प्रीतम का उपन्यास ‘पिंजर’ एक ऐसी लड़की के दर्द को बयान करता है, जो विभाजन के दौरान और बाद में बेहद तकलीफदेह जीवन जीती है. पिंजर को भारत-पाकिस्तान के विभाजन की पृष्ठभूमि के खिलाफ लिखे गए सर्वश्रेष्ठ साहित्य में से एक माना जाता है. उपन्यास पर फिल्म भी बनी, जिसने सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी जीता.
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