मेरठ: विपरीत हालात में हिम्मत नहीं हारने वाले लोग दुनिया में बेहद कम ही होते हैं. एक ऐसे ही कहानी मेरठ के अमित चौधरी की है. जब अमित की कहानी आप पढ़ंगे तो हैरान रह जाएंगे. बारह साल पहले, 18 साल की उम्र में अमित ने खुद को एक ऐसे अपराध में फंसा हुआ पाया जो उसने किया ही नहीं था.
TOI की रिपोर्ट के अनुसार यूपी के मेरठ में दो कांस्टेबलों की हत्या के लिए दोषी ठहराए जाने और गैंगस्टर होने का गलत आरोप लगाए जाने के बाद अमित का जीवन अचानक अंधेरे में डूब गया था. चूंकि मृतक पुलिसकर्मी थे, इसलिए अपराध ने तत्कालीन यूपी सीएम मायावती का ध्यान आकर्षित किया, जिन्होंने दोषियों की तत्काल गिरफ्तारी का आदेश दिया. घटना के समय अपनी बहन के साथ शामली में होने के बावजूद अमित इस मामले में 17 आरोपियों में से एक बन गए, जिन पर आईपीसी और एनएसए के तहत कड़े आरोप लगाए गए.
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कानून की पढ़ाई की
हत्या की साजिश रचने वाले कुख्यात कैल गिरोह का हिस्सा होने का आरोप लगाते हुए अमित को दो साल तक सलाखों के पीछे रहना पड़ा, ऐसे आरोपों का सामना करना पड़ा जिससे उनके भविष्य को खराब होने का खतरा था. हलांकि अमित ने प्रतिकूल परिस्थितियों को अपने उल्लेखनीय परिवर्तन में लगा दिया और परिस्थितियों से भागने के बजाय अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए कानून का अध्ययन किया.
बागपत के किरथल गांव के एक किसान का बेटा, वह जेल में भी अपने संकल्प पर दृढ़ रहा और कुख्यात जेल कैदियों द्वारा उसे आपराधिक गतिविधियों में शामिल करने के प्रयासों का विरोध किया. उन्होंने कहा ‘मुजफ्फरनगर जेल में, अनिल दुजाना और विक्की त्यागी (दोनों मुठभेड़ों में मारे गए) जैसे खूंखार गैंगस्टरों ने मुझे अपने गिरोह में शामिल करने की कोशिश की. जेलर अच्छे स्वभाव के थे, और उन्होंने मुझे एक ऐसे बैरक में जाने दिया, जहां गैंगस्टर नहीं रहते थे.’
साल 2013 में जमानत पर रिहा हुए अमित ने अपना नाम साफ करने के लिए एक दृढ़ यात्रा शुरू की. उन्होंने कहा कि ‘ताकि मेरा परिवार समाज में अपना सिर ऊंचा करके चल सके.’ कलंक से ऊपर उठकर, उन्होंने खुद को कानून के अध्ययन में शामिल कर लिया, शैक्षणिक मील के पत्थर हासिल किए जिनमें बीए, एलएलबी और एलएलएम शामिल थे, और अंततः बार काउंसिल की परीक्षा उत्तीर्ण की.
खुद लड़ा अपना केस
कानूनी ज्ञान से लैस होकर, उन्होंने अपने केस की जिम्मेदारी स्वयं संभाली. उन्होंने आगे कहा ‘मैं, एक वकील के रूप में, अपने मामले का प्रतिनिधित्व करते हुए, उस अधिकारी के ठीक सामने खड़ा था जो गवाह बॉक्स में खड़ा था, और फिर भी वह मुझे नहीं पहचान सका. इससे न्यायाधीश हैरान हो गए और उन्हें विश्वास हो गया कि मुझे गलत तरीके से फंसाया गया है.’

सेना में भर्ती होने का था सपना
अदालत का फैसला, जो हाल ही में आया, ने अमित सहित 13 व्यक्तियों को बरी कर दिया. हालांकि उनका सपना सेना में शामिल होने का टूट गया. उन्होंने कहा ‘मैंने सेना में भर्ती होने का सपना देखा था और इसके लिए तैयारी भी कर रहा था. लेकिन 2011 की उस काली रात ने मेरी जिंदगी बदल दी. अब मैं आपराधिक न्याय में पीएचडी करना चाहता हूं. मुझे लगता है कि भगवान ने मुझे अन्य दुर्भाग्यशाली लोगों के लिए लड़ने के लिए चुना है. अब यही मेरी नियति है.’
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FIRST PUBLISHED : December 10, 2023, 07:54 IST
