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44 साल पहले, तबाही के उस मंजर में जब 29 साल के मोदी ने हाथों से मलबा हटाया, पशुओं की लाशों को उठाया

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दिल्ली : गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के राजकोट जिले में मोरबी या मोरवी एक शहर है. ये शहर अपने समृद्ध सेरेमिक व्यापार के लिए जाना जाता है. मोरबी मच्छु नदी के नट पर बसा है. ऐतिहासिक रूप से इस शहर की अपनी पहचान है लेकिन भौगोलिक रूप से भी इसका महत्व है. गुजरात में ये एक ऐसा क्षेत्र माना जाता है, जहां बारिश आमतौर पर ज्यादा होती है. आजाद भारत में सिंचाई और पानी की व्यवस्था के लिए बांधों की जरूरत थी, और नए भारत के लिए बांध किसी मंदिर से कम नहीं थे.

इसी प्राकृतिक और भौगोलिक स्थिति को देखते हुए साल 1959 में गुजरात में मच्छु नदी पर बांध बनाया गया. ये बांध उस क्षेत्र की सिंचाई व्यवस्था के लिए तैयार किया गया था. कुछ साल बाद करीब 1972 में एक दूसरा बांध बनाया गया जिसे मच्छु -II के नाम से जाना गया. इस बांध का आकार करीब 2000 स्क्वायर किमी था, जो पहले बांध की तुलना में काफी बड़ा था.

इस बांध के बनने के कई सालों तक सब ठीक रहा जब तक कि 11 अगस्त 1979 में एक भयानक हादसा नहीं घटा. मानसून के मौसम में सौराष्ट्र के राजकोट जिले में जबरदस्त बारिश हुई, मोरबी भी इस भारी बारिश का गवाह बना. इस बांध के आसपास रहने वाले मोरबी के वासियों को अंदाजा नहीं था कि सिंचाई के लिए तैयार हुआ ये नया बांध बढ़ते पानी के प्रेशर को नहीं झेल पाएगा. 11 अगस्त के दिन बिना किसी चेतावनी के मच्छु -II बांध मिनटों में टूट जाता है. एक के बाद एक लहर आसपास के पास के इलाके को इतना तबाह कर देती है कि मोरबी शहर तबाही के मंजर में डूब जाता है.

20 हजार लोगों की मौत?

मोरबी की तबाही का ये ये पूरा किस्सा ब्लू क्राफ्ट डिजिटल फाउंडेशन की कम्पाइल्ड किताब Resilient India में दर्ज है. इस किताब के मुताबिक बांध के टूटने के बाद हुई तबाही में जिन लोगों ने खुद को जैसे तैसे बचाया वो खुशकिस्मत थे लेकिन 5 फरवरी 2022 को आउटलुक में छपे ईश्वरन एसबी की किताब ‘द लाउडेस्ट क्रैश ऑफ 79’ के लेख के मुताबिक इस हादसे में कुछ हजार से 20 हजार लोगों की मौत हुई थी. आर्थिक तौर पर करोड़ों डॉलर का नुकसान भारत को झेलना पड़ा था.

एक तरफ जहां गुजरात में बाबू भाई पटेल की सरकार पीड़ितों मदद पहुंचा रही थी, वहीं केंद्र में मौजूद इंदिरा गांधी की सरकार लगी हुई थी. इसके साथ-साथ आपदा के वक्त सबसे पहले काम करने वालों में फायरफाइटर्स, वॉलिंटियर और कई सामाजिक संगठन मौजूद थे. ये संगठन बिना किसी लोभ-लालच के पीड़ितों के लिए सेवाएं दे रहे थे.

इन सामाजिक संगठनों में एक संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ भी था. आपदा की खबर के बाद से ही संघ के कार्यकर्ता पीड़ितों, आम लोगों और बेसहारों की मदद के लिए खड़े थे. हजारों कार्यकर्ता संघ के वरिष्ठ नेतृत्व लक्ष्मण राव इनामदार (जिन्हें वकील साहब के नाम से पहचाना जाता है), केशवराव देशमुख, प्रवीनभाई मनियार, केशुभाई पटेल के साथ काम कर रहे थे.

इन हजारों कार्यकर्ताओं में एक नाम 29 साल के नरेंद्र मोदी का भी था, जो राष्ट्रीय स्वयं सेवक के युवा कार्यकर्ता थे. मोरबी में जिस दिन ये भयानक हादसा हुआ वो उस वक्त केरल में मौजूद थे. मोदी वहां संगठन का काम संभाल रहे थे. पहले आज के दौर की तरह सूचनाएं तुरंत नहीं पहुंचती थी लेकिन जैसे ही नरेंद्र मोदी को मोरबी हादसे की जानकारी मिली, तुरंत वो संघ के आदेश पर मोरबी के लिए रवाना हो गए.

2 दिन में केरल से मोरबी पहुंचे मोदी

Resilient India किताब के मुताबिक 2017 में नरेंद्र मोदी ने एक कार्यक्रम के दौरान इस पूरे हादसे की कहानी बयां की थी. उन्होंने कार्यक्रम के दौरान बताया कि “11 अगस्त 1979 के दिन जब ये हादसा हुआ तो मैं केरल के तिरुवनंतपुरम में था. जानकारी मिलते ही 13 अगस्त को मैं मोरबी में था. संघ के कार्यकर्ता सड़क पर थे, वो वहां बाधाओं को हटाने और मानवीय सहायता में अपना योगदान दे रहे थे.” इससे पहले इमरजेंसी के काले दिनों में 29 साल के नरेंद्र मोदी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ विभाग प्रचारक की भूमिका को बेहतर ढंग से निभाकर अपने नेतृत्व की क्षमताओं को साबित कर चुके थे.

भयानक मंजर और सेवाभाव

Resilient India किताब में दिए वर्णन के मुताबिक जब मोदी मोरबी पहुंचे तो वहां सड़कों पर पानी भरा था. संघ के कार्यकर्ता 1-2 किमी पानी में चलते हुए मोरबी शहर में दाखिल हुए. वहां के हालात बेहद खराब थे. आरएसएस कार्यकर्ता गिरीश भट्ट के मुताबिक इंसानों और जानवरों की लाश बिजली के तारों पर लटकी थीं. मोरबी में बिजली और पानी की कोई व्यवस्था नहीं थी.

प्रचारक मोदी ने वहां के हालातों को देखते हुए विस्तार से एक प्लान तैयार किया. हर टीम को एक खास काम दिया गया, जो आम जनता की अलग अलग जरूरतों और समस्याओं का निदान करने के लिए तैयार थीं. निवर्तमान सरकार अपने एक्शन के लिए तैयार होती और जमीन पर हर व्यक्ति तक मदद पहुंचाती उससे पहले प्रचारक मोदी का काम शुरू हो गया था.

1 महीने मोरबी की सेवा

मोरबी में अपने 2017 में दिए भाषण में प्रधानमंत्री मोदी ने स्वयं बताया था कि “मैंने मोरबी के सबसे दुखद वक्त में 1 महीने का वक्त बिताया है. जहां मैंने मिट्टी को हटाया, मरे हुए पशुओं की लाश को उठाया और परिवारों के लिए उनके अपनों के अंतिम संस्कार किए, जो इस आपदा का शिकार हुए.”

30 सितंबर 1979 में छपी टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक नरेंद्र मोदी की लीडरशिप में बाढ़ आपदा राहत कमेटी का गठन किया गया. रिपोर्ट के मुताबिक इस कमेटी ने बाढ़ पीड़ितों के घरों को बनाने के लिए 14 लाख रुपये इकट्ठा किए. इस कमेटी का काम पीड़ितों को मुफ्त मेडिकल मदद मुहैया कराना, फ्री अनाज और कपड़े मुहैया कराना था. स्वयं सेवक संघ, महाराष्ट्र ईकाई ने भी मोदी के नेतृत्व में काम करने वाली इस कमेटी को 5 लाख रुपये की मदद की थी.

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