हाइलाइट्स
महुआ मोइत्रा लोकसभा से अपने निष्कासन को कानूनी रूप से चुनौती दे सकती हैं.
महुआ के पास निष्कासन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का विकल्प है.
सदन की कार्यवाही को प्रक्रियात्मक अनियमितता के आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती.
नई दिल्ली. तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा (Mahua Moitra) को शुक्रवार को लोकसभा (Lok Sabha) से निष्कासित कर दिया गया. सदन ने अपनी आचार समिति की उस रिपोर्ट को अपनाया, जिसमें उन्हें ‘अनैतिक आचरण’ में शामिल होने और ‘गंभीर दुष्कर्म’ करने का दोषी ठहराया गया और उनके निष्कासन की सिफारिश की गई. जबकि उनकी पार्टी ने उनका समर्थन किया है और इस मुद्दे पर राजनीतिक रूप से लड़ने की कसम खाई है. इन सबसे बावजदू सबसे बड़ा सवाल है कि उनके लिए आगे की कानूनी लड़ाई का रास्ता क्या है? ‘इंडियन एक्सप्रेस’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी आचार्य का कहना है कि उनके पास निष्कासन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का विकल्प है.
आजार्य बताते हैं कि ‘आम तौर पर सदन की कार्यवाही को प्रक्रियात्मक अनियमितता के आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती है. संविधान का अनुच्छेद 122 इसके बारे में बहुत साफ है. यह सदन की कार्यवाही को अदालत की चुनौती से प्रतिरक्षा प्रदान करता है. अनुच्छेद 122 कहता है कि “प्रक्रिया की किसी भी कथित अनियमितता के आधार पर संसद में किसी भी कार्यवाही की वैधता पर सवाल नहीं उठाया जाएगा.’ हालाकि आचार्य बताते हैं, सुप्रीम कोर्ट ने 2007 के राजा राम पाल मामले में कहा था कि ‘वे प्रतिबंध केवल प्रक्रियात्मक अनियमितताओं के लिए हैं. ऐसे अन्य मामले भी हो सकते हैं जहां न्यायिक समीक्षा जरूरी हो सकती है.’
राजा राम पाल मामला
बसपा के नेता राजा राम पाल दिसंबर 2005 में कैश-फॉर-क्वेरी घोटाले में कथित संलिप्तता के लिए निष्कासित किए गए 12 सांसदों में शामिल थे. इनमें 11 लोकसभा से और एक राज्यसभा से सांसद थे. जनवरी 2007 में सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान पीठ ने 4-1 के बहुमत से निष्कासित सांसदों की दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया और निष्कासन को कायम रखा था. लेकिन साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘जो कार्यवाही वास्तविक या घोर अवैधता या असंवैधानिकता के कारण दागी हो सकती है, उनका न्यायिक जांच से बचाव नहीं किया जाता है.’
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश वाईके सभरवाल की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने आगे कहा कि ‘न्यायपालिका को नागरिकों को दिए गए मौलिक अधिकारों पर अतिक्रमण करने वाली विधायिका की कार्रवाई की वैधता की जांच करने से नहीं रोका गया है. अवमानना या विशेषाधिकार की शक्ति के प्रयोग के तरीके की न्यायिक समीक्षा का मतलब यह नहीं है कि उस क्षेत्राधिकार को न्यायपालिका द्वारा हड़प लिया जा रहा है.’ इसमें संविधान के अनुच्छेद 105(3) के बारे में भी बात की गई. संविधान का अनुच्छेद 105 संसद और उसके सदस्यों और समितियों की शक्तियों और विशेषाधिकारों से संबंधित है.
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चुनौती का आधार
महुआ मोइत्रा ने दावा किया है कि उन्हें प्राकृतिक न्याय से वंचित कर दिया गया. कथित तौर पर उन्हें रिश्वत देने का आरोप लगाने वाले व्यापारी दर्शन हीरानंदानी और मूल रूप से उनके खिलाफ आरोप लगाने वाले वकील जय अनंत देहाद्राई से उनको जिरह करने की अनुमति नहीं दी गई थी. आचार्य का कहना है कि ‘मोइत्रा पर एक मुख्य आरोप यह है कि उन्होंने संसद का लॉगिन-पासवर्ड किसी अन्य व्यक्ति के साथ साझा किया है. लोकसभा के नियम उस पर चुप हैं. यह नहीं कहता कि यह नियम का उल्लंघन है. वे कहते हैं कि अगर इस विषय पर कोई नियम या कानून नहीं है, तो आप कानून का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति के खिलाफ कैसे कार्रवाई कर सकते हैं? इस विशेष मामले में यह एक बुनियादी समस्या है. जबकि सवाल पूछने के लिए एक व्यवसायी से (कथित तौर पर) पैसे लेना विशेषाधिकार का उल्लंघन था और इसकी विशेषाधिकार समिति द्वारा जांच की जानी चाहिए थी.’
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FIRST PUBLISHED : December 9, 2023, 06:57 IST
